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उत्तराखंड के पारम्परिक लोक नृत्य

यक़ीनन ढोल -दमाऊ, रणसिंगा, और मशकबीन के सुरमयी तालमेल से जो नृत्य झंकार फूटती है उसका आज के DJ और बैंड से कोई भी सीधी तुलना नहीं है । उत्तराखंड की देवभूमि अपनी विभन्न कला विरासतों को सुंदरता से संजोई हुई है और आज की पीड़ी को निश्चित रूप से गौरवान्वित मह्शूश  कराती है ।  गांव में हर छोटे – बड़े ख़ुशी और त्यौहारों के मौके पर इन पारम्परिक नृत्य कलाओं में सम्लित हो जाने भर से ही हमें इन नृत्य शैलियों की गहराई और महानता का एहसास हो जाता है । उत्तराखंड के विभिन्न भौगोलिक छेत्रों में निम्न पारम्परिक नृत्य किये जाते हैं ।  आपको भी इनकी पूरी जानकारी होनीं चाहिए और वीडियो के माध्यम से आप इनके करीबी पहलुओं को जान सकेंगे और यकीनन आप अपने आप को अंदर से थिरकने से नहीं रोक पाओगे । 

1. झुमैलो –

एक दुसरे के कमर के पीछे से हाथों को पकडे हुए गोल – गोल वृत्ताकार घुमते हुए संगीत के बोल पर एक दुसरे से ताल में ताल मिलते हुए गीत में पूरी तरह से समावेश हो नृत्य में झूमते लोग झुमेलो को महान बना देते हैं और इसी वजह से इस नृत्य का नाम झुमेलो रखा गया है । 

खुसी के अहम् मौकों और त्योहारों पर इसे एक खास उत्तराखंडी परिधान और वेश भूषा पहन के किया जाता है जो इसे और भी रमणीय बना देता है । पुरुष पहाड़ी टोपी लगाते हैं जबकि महिलायें सर पे सापा, नाक में नथुली और पाखुला पहनती हैं ।  

हालंकि पुरुष और महिलाएं दोनों इस नृत्य में सम्लित होते हैं परन्तु महिलायें इस नृत्य को बढ़-चढ़ के करती हैं । झुमैलो उत्तराखंड का सुप्रसिद्ध लोक नृत्य है और ये कुमाऊँ और गढ़वाल दोनों छेत्रों में हर्सो -उल्लाश के साथ किया जाता है |

2. हारुल –

हाथों में हाथ डाले कदम से कदम मिलाते, एक-दूसरे को पकड़े हुए, गायन, संगीत और बाध्य यंत्रों की दनदनाती धुन पे क़दमों का थिरकाव और पैरों को मोड़ते हुए कभी-कभी घुटने के झटकों के साथ सभी नर्तकों का एक समान समक्रमिकता के साथ किये जाने वाले नृत्य को  देख भर लेने से  ही रोम -रोम रोमांचित हो उठता है ।

महिलाएं आंतरिक चक्र और पुरुषों, बाहरी चक्र में नृत्य करते हैं । नृत्य के साथ गाये जाने वाला गीत आमतौर पर पुरुषों और महिलाओं के बीच एक प्रारूपी संवाद होता है ।  इसके मुख्यतः गीत महाभारत की गाथाओं पे आधारित हैं और ये जौनसार बावर छेत्र का मुख्य लोक नृत्य है ।  

3. तांदी –

तांदी मुख्यतः उत्तरकाशी और टिहरी जिले के जौनपुर क्षेत्र में माघ के महीने में या अन्य खुशी के मौकों  में हर्सो -उल्लाश के साथ किया जाता है । इस नृत्य को भी गोल चक्कर में घूम के एक दूसरे का हाथ पकड़ के किया जाता है । इसकी मुख्य विशेषता ये है कि इस में जो गीत गया जाता है वो सच्ची सामाजिक घटनाओं पर आधारित होता है । इन गीतों में छेत्र के प्रशिद्ध व्यक्तियों का भी उल्लेख होता है जिनमे उनकी प्रेरणा दायक जीवनगाथा का वर्णन होता है और ये निश्चित तौर पे लोगों में एकता और अखंडता बनये रखने का काम करता है | 

4. छलिया –

रंग बिरंगे  कपडे पहन हाथ में ढाल और तलवार लिए ढोल दमाऊँ रणसिंगा, तुरही और मशकबीन की मधुर धुन पे कलाबाजी दिखते और थिरकते लोग छलिया नृत्य की पहचान को फीकी पड़ने नहीं देते ।  इस नृत्य में  पौराणिक युद्ध परंपरा और सैनिकों के प्राकर्म की छवि दिखाई पड़ती है । बताया जाता है कि यह नृत्य शैली एक हज़ार साल से भी पुरानी है । यह उत्तराखंड के कुमाऊं छेत्र के पिथौरागढ़, बागेश्वर और अम्लोडा जिले का प्रसिद्ध लोकनृत्य है और अक्सर शादियों में बड़े धूम धाम से किया जाता है ।

5. मंडाण –

ढोल – दमाऊं की बेजोड़ जुगलबंदी और मंत्र मुग्ध करने वाली ध्वनि पर थिरकते लोगों से मंडाण का अंदाज़ अलग ही बयाँ होता है । शादी-ब्याह अथवा धार्मिक अनुष्ठानों के मौके पर गांव के खुले मैदान (खलिहान) या चौक में इस नृत्य को किया जाता है । इसमें ढोल और दमाऊं की ताल कुछ ऐसी होती है की आप थिरकने से नहीं रुक पाते ।  

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